
“मृत्यु अंत है।”
हाँ, “अंत”।
और हमें लगता है कि हम इसे जानते हैं। हर कोई इसे जानता है।
सही?
नहीं, बिल्कुल भी नहीं।
हम में से अधिकांश लोग यह भी नहीं समझ पाते कि अंत वास्तव में क्या है।
चाहे हम कितने भी तार्किक, शिक्षित, या तर्कसंगत होने का दिखावा करें, हम अभी भी इस एक साधारण सत्य को नहीं समझ पाए हैं:
मृत्यु के बाद, हम वही “होंगे” जो हम अपने जन्म से पहले “थे”। बस…… कुछ भी नहीं।
यदि आप उन लोगों में से हैं जो सोचते हैं कि आपने इस साधारण तथ्य को वास्तव में स्वीकार कर लिया है, तो आइए देखें कि यह स्वीकृति कितनी गहरी है।
मेरे साथ इस काल्पनिक बातचीत में शामिल हों, जिसमें कोई ऐसा व्यक्ति है जो दावा करता है कि वह मृत्यु को पूर्ण अंत के रूप में देखता है।
मुझे भूतों में विश्वास नहीं है।
रुकिए, क्या आप उन लोगों की बात कर रहे हैं जो पुनर्जनन में विश्वास करते हैं? परलोक? भूत? आत्माएं? मृत्यु के निकट के अनुभव?
क्षमा करें। मैं उनमें से एक नहीं हूँ। मेरे लिए ये सिर्फ कहानियाँ हैं।

नहीं, मैं सिर्फ उनके बारे में बात नहीं कर रहा।
मैं हम सभी, जिसमें मैं भी शामिल हूँ, की बात कर रहा हूँ।
मुझे आपके बारे में नहीं पता, लेकिन मुझे विज्ञान पर विश्वास है। मैं जानता हूँ कि मैं मृत्यु के बाद नहीं रहूँगा।
विश्वास? विज्ञान पर? यह रोचक है।
खैर, उस पर अटकते नहीं हैं। चलिए मृत्यु की बात करते हैं।
शायद आपने इस तथ्य को स्वीकार कर लिया है कि कुछ भी नहीं बचेगा। लेकिन क्या आपने कभी वास्तव में इसके अर्थ के साथ समय बिताया है?
मेरा मतलब है, क्या आपने इसे वास्तव में महसूस किया है? न कि सिर्फ आपके दिमाग में एक विचार के रूप में, बल्कि एक तथ्य के रूप में? ऐसा तथ्य जो उतना ही सच है जितना कि ये कुर्सी?
हाँ, मैंने किया है।
ठीक है। चलिए इसका परीक्षण करते हैं। यह इतना मुश्किल नहीं है। बस आपके अपने जीवन से कुछ चीजें, बस इतना ही चाहिए।
वे दिखाएंगे कि क्या आपने वास्तव में मृत्यु को अंत के रूप में स्वीकार किया है या नहीं।
या शायद, कहीं गहरे में, आपको अभी भी लगता है कि मृत्यु बस… जीवन का एक शांत संस्करण है। बस किसी और तरीके से जारी रहता है।
चुप…. सीधा ऐसे नहीं कहते कि वो “मर” गया है।
अगर किसी की “मृत्यु” हो जाए तो हम ये शब्द इस्तेमाल भी नहीं करते। और उसके बजाय हम जो वाक्यांश उपयोग करते हैं और उन्में निहित धारणाओं को देखें:
- हमेशा के लिए चला गया, गुजर गया, प्रस्थान किया:-
ऐसा लगता है जैसे वे कहीं और चले गए हैं। - अब हमारे साथ नहीं है:-
जैसे कि वे बस… किसी और के साथ हैं। - देहांत हो गया:-
जैसे उनकी देह का अंत हो गया है, पर वो अभी भी हैं।
और ये सिर्फ़ हिन्दी भाषा में ही नहीं है। ऐसा हम सभी भाषाओं में करते हैं। जैसे अंग्रेज़ी में :- Rest in Peace, Passed Away जैसे शब्दों का इस्तेमाल होता है।
क्या यह नहीं दिखाता कि हमने मृत्यु की सच्ची प्रकृति को स्वीकार नहीं किया है?

लेकिन मैं उन लोगों में से नहीं हूँ। जब कोई मरता है, मैं बस कहता हूँ कि वे मर गए हैं। बस। और कुछ नहीं।
मुझे उनके लिए खेद हो सकता है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि मैं इस साधारण सत्य को छिपाने के लिए इन वाक्यांशों का उपयोग करूँगा।
मृतकों के लिए खेद महसूस करना?
लेकिन हम किसी के लिए खेद क्यों महसूस करते हैं… जो अब मौजूद भी नहीं है?
शायद आपको विश्वास है कि जीवन एक अद्भुत अनुभव है, और जो अब हमारे साथ नहीं हैं, वे किसी असाधारण चीज से चूक रहे हैं।
लेकिन सोचिए। क्या कुछ भी चूकने के लिए मौजूद होना जरूरी नहीं है?
क्या हम उन सभी लोगों के लिए खेद महसूस करते हैं जो अभी तक पैदा नहीं हुए हैं? वे भी तो चूक रहे हैं, है ना?
हम्म… बिल्कुल नहीं।
तो, हम मृतकों के साथ अलग तरह से व्यवहार क्यों करते हैं?

मृतकों के रिश्तेदारों के लिए खेद महसूस करना एक बात है। लेकिन मृतकों के लिए ही खेद महसूस करना? यह पूरी तरह से अलग बात है।
ईमानदारी से, मुझे नहीं लगता कि मैं उस श्रेणी में आता हूँ।
अब मैं देख सकता हूँ कि मैंने मृतकों के परिवारों के लिए खेद महसूस किया है, न कि उन लोगों के लिए जो मर गए हैं।
आपको केवल मृत्यु से ही डर है।
ठीक है, मैं आपसे यह पूछता हूँ:
क्या आपको मृत्यु से डर लगता है?
नहीं, मुझे नहीं लगता। मैं मृत्यु के बारे में इतना नहीं सोचता।
तो आपको शायद इसे समझाने की जरूरत नहीं है।
ठीक है, उचित है। लेकिन उन सभी अन्य डरों का क्या जो हम में से अधिकांश लोग हर दिन अपने साथ लिए फिरते हैं? जैसे,
- अज्ञात का डर
- अंधेरे का डर
- असफलता का डर
- शारीरिक दर्द का डर
- बुढ़ापे का डर
- सार्वजनिक स्थान पर बोलने का डर
क्या ये सभी, किसी न किसी तरह से… एक ही चीज के अलग-अलग मुखौटे नहीं हैं?
मृत्यु का डर।

क्या??? ये मृत्यु से कैसे जुड़े हैं?
उस व्यक्ति के बारे में सोचें जो अपने जीवन में किसी भी समय मरने के लिए तैयार है। वह अभी अपने “अंतिम अंत” के लिए तैयार है।
अब मुझे बताइए, क्या आपको लगता है कि वह व्यक्ति सार्वजनिक बोलने से डरेगा? किसी चीज में असफल होने से? बूढ़ा होने, या अंधेरे में अकेले चलने से?
शायद नहीं, है ना?
क्या यह आपको कुछ नहीं बताता? कि ये सभी छोटे-छोटे, रोजमर्रा के डर… बस मृत्यु के डर के प्रकट होने के तरीके हैं।
यह “मृत्यु” का बड़ा चिह्न लेकर नहीं आता।
लेकिन यह वहाँ है। छिपा हुआ। शांत, लेकिन मौजूद।
मुझे अभी भी लगता है कि इनमें से अधिकांश डर वास्तव में मृत्यु के बारे में नहीं हैं। अपितु वे जीवित रहते हुए कष्ट के डर जैसे लगते हैं।
ठीक है, चलिए इन व्यक्तिगत डरों को चरम पर ले जाते हैं और देखते हैं कि वे हमें क्या बताने की कोशिश कर रहे हैं।
अज्ञात का डर
मान लीजिए कि अज्ञात कुछ भयानक निकलता है। इतना भयानक कि यह आपको पूरी तरह मिटा देता है। सबसे बुरा क्या हो सकता है?
मृत्यु, है ना?
अंधेरे का डर
मान लीजिए कि अंधेरे में वास्तव में कुछ छिपा है। एक राक्षस, एक हत्यारा, जो भी हो। वह क्या करेगा?
आपको मार डालेगा। फिर से, मृत्यु।
असफलता का डर
कल्पना करें कि आप इतनी बुरी तरह असफल हो जाते हैं कि आप सब कुछ खो देते हैं। आपका पैसा, आपका सम्मान, आपकी आत्ममूल्य की भावना। यह इतना बुरा हो जाता है कि आप अपनी जिंदगी खत्म करने के बारे में सोचने लगते हैं। तो, वह डर अंततः कहाँ जाता है?
मृत्यु!
शारीरिक दर्द का डर
सोचिए सबसे बुरे दर्द के बारे में जो कोई भी सह सकता है। वह दर्द जो आपको अपने शरीर से भागने के लिए मजबूर करता है।
लेकिन वह दर्द बेतरतीब नहीं है। यह एक संकेत है। यह कह रहा है: “हाय, कुछ गलत है। इसे ठीक करें, वरना आप मर सकते हैं।” यह एक जीवित रहने की चेतावनी है।
और अगर हमें उस संभावना का ही डर नहीं जिसकी दर्द चेतावनी दे रहा है, तो हम चेतावनी से क्यों डरेंगे?
बुढ़ापे का डर
वह वास्तव में क्या है? यह सिर्फ छोटे-छोटे कदमों में धीमी मृत्यु है। एक शांत आहट कि सब कुछ अंत की ओर बढ़ रहा है।
सार्वजनिक स्थान बोलने का डर
कल्पना करें: आप एक भाषण देते हैं। और हर कोई इसे नफरत करता है। सचमुच नफरत करता है।
आप अपमानित होते हैं। अस्वीकृत। लोग आप पर हँसते हैं।
आपको लगता है कि आप बेकार कचरे का टुकड़ा हैं। इतने बेकार, कि ऐसा लगता है जैसे आपका अस्तित्व अब मायने नहीं रखता।
क्या यह भी एक तरह की मृत्यु नहीं है?
लेकिन आप मृत्यु से डर नहीं सकते?
ठीक है, मान लीजिए मैं स्वीकार करता हूँ कि ये सभी डर एक ही चीज की शाखाएँ हैं, मृत्यु का डर। तो क्या?
यह केवल यह साबित करता है कि अगर आपके पास इनमें से कोई भी डर है, तो:-
– आप केवल मृत्यु से डरते हैं, और
– आपने वास्तव में इसे समझा नहीं है।
लेकिन…मृत्यु का डर यह कैसे साबित करता है कि मैंने मृत्यु को नहीं समझा?
मुझे लगता है कि यह सिर्फ यह दिखाता है कि मैं अभी मरना नहीं चाहता। बस इतना ही।
ठीक है, इसके बारे में सोचें। डर को सबसे पहले क्या पैदा करता है?
क्या यह सिर्फ… एक विचार नहीं है?
एक विचार जैसे:
क्या होगा अगर मैं कुछ खो दूँ?
क्या होगा अगर मैं कष्ट सहूँ?
क्या होगा अगर चीजें अब से और खराब हो जाएँ?

चाहे वह किसी भी तरह का विचार हो, अगर यह डर पैदा कर रहा है, तो उसमें हमेशा एक “मैं” होता है। और एक “क्या होगा अगर”।
और अगर हमें मृत्यु से डर लगता है, तो क्या यह नहीं दिखाता कि, गहरे में, हम अभी भी कल्पना करते हैं कि हम मृत्यु के बाद भी ज़िंदा रहेंगे?
ज़िंदा रहेंगे कोई अनपेक्षित परिणाम को भुगतने के लिए। शायद शारीरिक रूप से नहीं — लेकिन एक मानसिक रूप में।
मेरे परिवार का क्या?

नहीं, ऐसा नहीं है कि मुझे डर है कि मेरे साथ कुछ होगा।
मुझे डर है कि मेरे जाने के बाद मेरे प्रियजनों के साथ क्या होगा। इसलिए मैंने जीवन बीमा भी खरीदा है। उनके लिए।
आपने कहा — “मेरे प्रियजन।” लेकिन कुछ मेरा होने के लिए, क्या वहाँ एक मैं नहीं होना चाहिए?
और अगर वह “मैं” मृत्यु के पार नहीं जा सकता…
तो कुछ भी “मेरा” मृत्यु के पार कैसे चला जाएगा?
इसलिए “आपके” प्रियजनों के लिए डरने में भी, आपने पहले से ही मान लिया है कि मृत्यु के बाद भी आप किसी रूप में रहेंगे। आपका कोई हिस्सा जो अभी भी उस संबंध को रखता है।
अगर कोई ऐसा इंसान है जो मृत्यु की संपूर्णता को समझ चुका है, ऐसे इंसान के लिए जीवन बीमा भूत ही अजीब चीज़ होगी।
ठीक है, शायद मैं “मेरा” परिवार नहीं कहूँगा। लेकिन फिर भी… एक परिवार होगा। और वे कष्ट सहेंगे।
मैं उससे छोड़ कर ऐसे ही कैसे बस चला जाऊँ? उस परिवार से जिसके साथ मैंने अभी, इस जीवन में, समय बिताया है?
जब आप बीमा खरीदते हैं, तो आप किसी को भी नामांकित नहीं करते। आप विशेष रूप से अपने परिवार को चुनते हैं।
जब आप बीमा खरीदते हैं, तो आप ऐसी भविष्य की कल्पना करते हैं जिसमे आप नहीं है। एक भविष्य जहाँ आपका परिवार कष्ट सह सकता है। और वह छवि दुख देती है।
यह दुखता है क्योंकि आप इसे उस व्यक्ति के दृष्टिकोण से देख रहे हैं जो आप अभी हैं, जिसका एक परिवार है।

लेकिन आप यह देखने में असमर्थ हैं:
वह व्यक्ति जो उस प्रक्षेपण में दर्द महसूस करता है… उस भविष्य में मौजूद ही नहीं होगा।
मुझे एक उदाहरण से समझाने की कोशिश करें।
अगर मैं जलने की कल्पना करता हूँ, तो मुझे डर लगता है। लेकिन मुझे पता है कि वह दर्द मरने के बाद नहीं रहेगा। तो अभी भी, मैं कह सकता हूँ, मृत्यु के बाद शरीर के साथ जो चाहे करें। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।
यह देखना अच्छा है कि आपको अपने मरने के बाद अपने शरीर की चिंता नहीं है। ज्यादातर लोग इतना दूर भी नहीं पहुँचते।
लेकिन, परिवार के मामले में, यह अलग है। यह सिर्फ उन भावनाओं के बारे में नहीं है जो मैं अपने परिवार की स्थिति की कल्पना करते समय महसूस कर रहा हूँ। मुझे पता है कि वे भावनाएँ मरने के बाद नहीं होंगी।
लेकिन परिवार निश्चित रूप से वहाँ होगा। तो, मुझे अभी उनकी चिंता क्यों नहीं करनी चाहिए?
क्या आप कहेंगे कि आपने कल रात सपने में जिस परिवार को पाला, वह अभी भूखा है… सिर्फ इसलिए कि आप अब उस सपने में नहीं हैं?
क्या? यह एक जैसा नहीं है। आपने असली परिवारों को कष्ट सहते देखा है जब कोई मरता है। आप इसकी तुलना सपने से नहीं कर सकते।
लेकिन क्या हो अगर, एक सपने में, आपने भी कुछ परिवारों को कष्ट सहते देखा हो ?
क्या यह इसे वास्तविक बनाएगा? क्या इसका मतलब होगा कि आपका सपने का परिवार कहीं बाहर, आपके बिना कष्ट सह रहा है?
यह पूरी तरह से बकवास है।
सपने सिर्फ आपके दिमाग की कल्पना हैं। यह सिर्फ वह सामग्री है जो यह दिमाग हमारी नींद के दौरान कल्पना करता है।
उनका कुछ भी असली जिंदगी से लेना-देना नहीं है।
लगता है हमें इसमें और गहराई से जाना होगा। यह रोचक होने वाला है। मेरे साथ रहें।
पूरी दुनिया आपके साथ डूब जाएगी!
क्या हो अगर मैं आपसे कहूँ कि आप जो कुछ भी अभी देख रहे हैं, वह सारा दृश्य, आपके मरने के बाद खत्म हो जाएगा?
वास्तव में, कोई ‘बाद’ भी नहीं होगा।

क्या आप पागल हो गए हैं?
रुकिए। एक सेकंड रुकें।
कल्पना करें कि आपके मरने के बाद क्या होगा।
गंभीरता से, अपनी आँखें बंद करें। इसे चित्रित करें।
अगर आप अभी, इसी पल मर गए, तो क्या होगा?
हम्म……
अगर आप कुछ भी कल्पना कर सकते हैं, तो आपने अभी तक मृत्यु को नहीं समझा है।
लेकिन क्या कोई अंतिम संस्कार नहीं होगा?
क्या लोग शोक नहीं करेंगे? क्या मेरे बिना जीवन नहीं चलेगा?
हम यह सब मानते हैं क्योंकि हमने दूसरों को मरते देखा है।
और जीवन चलता रहता है, इसलिए हमें लगता है, हमारे साथ भी ऐसा ही होगा।
लेकिन हम यह भूल जाते हैं: आपकी मृत्यु आपके लिये किसी और की मृत्यु जैसी बिलकुल नहीं होने वाली।
और वह कैसे?
फिर से, इसे अपने जन्म की तरह सोचें।
पूरी दुनिया आपके साथ पैदा हुई थी
हम हर दिन बच्चों को पैदा होते देखते हैं और सोचते हैं,
बस एक और दुनिया में जुड़ गया।
लेकिन क्या आपका जन्म आपके लिए सिर्फ एक संख्या था?
क्या आपको ऐसा लगा कि आपको एक पहले से चल रही कहानी में डाल दिया गया?
नहीं। आपका जन्म एक निरंतरता नहीं था। यह आपकी पूरी दुनिया का प्रारंभ था।

लेकिन मेरे जन्म से पहले दुनिया थी। मैंने इतिहास पढ़ा है। मैंने अपने परिवार की तस्वीरें देखी हैं।
क्या आप अपने जन्म से पहले या बाद में यह सब जानते थे?
मेरे जन्म के बाद… जाहिर है।
लेकिन मैं उस समय की बात कर रहा हूँ जब आप पैदा नहीं हुए थे।
क्या कोई दुनिया थी?
हाँ, थी। मैंने अपने माता-पिता की शादी का एल्बम देखा है।
ठीक है, फिर से अपनी आँखें बंद करें। उनकी शादी की कल्पना करें।
आप क्या देखते हैं?
मैं अपने पुराने घर को देखता हूँ, मेरे युवा माता-पिता की शादी हो रही है, मेहमान, सजावट, सब कुछ।
ठीक है। अब मुझे बताइए।
क्या आपने वास्तव में एक दृश्य देखा?
या, क्या आपने तरंगों के माध्यम से प्रकाश का पता लगाया?
क्या यह रंगीन थी?
या, क्या यह सब काला और सफेद था?
क्या आपके माता-पिता सामान्य आकार के थे या दानव जैसे आकर के थे? आप कहाँ से देख रहे थे?
छत से? फर्श से? या, अपनी आँखों के स्तर से?
बस सामान्य, यार। मैंने इसे वैसे ही देखा जैसे मैं सब कुछ देखता हूँ।
रंगीन, मानव आकार का, और मेरी अपनी ऊँचाई से।
तो यहाँ तक कि जब आपने उस समय की कल्पना की जब आप मौजूद नहीं थे, तब भी आपने एक ऐसी दुनिया की तस्वीर बनाई जो आप अभी देखते हैं।
आपने अपनी दुनिया की कल्पना की जब वहाँ कोई “आप” नहीं था।
न कि चमगादड़ की दुनिया, न ही चूहे की, न ही मच्छर की।
यहाँ तक कि एक बच्चे की नज़र से भी आपने उस पल की कल्पना नहीं की।
आपने कल्पना की बस उसी संसार के रूप में जो आपको अभी भासित हो रहा है।

अब इसकी कल्पना करें:
एक हजार साल बाद, एक ऐसी प्रजाति का जानवर है जो एक निश्चित उम्र में सब कुछ चमकीले नारंगी रंग में देखता है।
क्या आप कहेंगे कि अभी भी एक नारंगी रंग की दुनिया मौजूद है?
क्या आप इस विरोधाभास को देख सकते हैं?
दुनिया सिर्फ ‘वहाँ बाहर’ नहीं है
हम्म… मुझे लगता है मैं समझ गया। लेकिन क्या आप और समझा सकते हैं?
आप जिस दुनिया के बारे में इतने निश्चित हैं, जो आपके जन्म से पहले और मृत्यु के बाद की है, वह सिर्फ एक कल्पना है।
और वह कल्पना पूरी तरह से इस बात से आकार लेती है कि आप अभी दुनिया को कैसे देखते हैं, एक 29 साल के पुरुष होमो सेपियन्स के रूप में जिसने एक विशिष्ट प्रकार का जीवन जिया है।
लेकिन मैं और कैसे कल्पना कर सकता हूँ? मैं इसे मच्छर के दृष्टिकोण से नहीं सोच सकता।
ठीक वैसे ही जैसे आप मच्छर के दृष्टिकोण से सपना नहीं देख सकते।
सपने के बाद, आप कम से कम जानते हैं कि यह सब आपके दिमाग ने बनाया था।
लेकिन, जब बात असली दुनिया की कल्पना करने की आती है,
आपके जन्म से पहले या मृत्यु के बाद,
आप इसे ऐसा मानते हैं जैसे यह वास्तव में थी और होगी।
लेकिन रुकिए… क्या यह वर्तमान की दुनिया के साथ भी ऐसा ही नहीं है? मेरा मतलब है, मैं इसे अब, इस 27 साल के इंसान के रूप में देख रहा हूँ।
क्या आप कहेंगे कि यह भी वास्तविक नहीं है?
मैं यह नहीं कहूँगा कि यह वास्तविक नहीं है। लेकिन मैं कहूँगा कि आप जो दुनिया देख रहे हैं वह पूरी तरह से आप पर निर्भर है। यह आपकी दुनिया है।
क्या आपको लगता है कि मच्छर की आपके जैसी ही दुनिया होगी?
नहीं, उसकी अपनी इंद्रियों के अनुसार पूरी तरह से अलग दुनिया होगी।

और अगर मैं आपसे पूछूँ कि किसकी दुनिया सही है?
मेरे लिए, मेरी दुनिया सही है। मच्छर के लिए, उसकी दुनिया सही है।
लेकिन क्या आप मृत्यु के बाद मौजूद रहेंगे?
नहीं
तो… किसकी दुनिया सही होगी?
किसके लिए?
मुझे नहीं पता। आप मुझे बताइए।
रुकिए… मैंने क्या पूछा था?
बिल्कुल। यही पूरा विरोधाभास है। हम मानते हैं कि हमारे पहले दुनिया थी, और हमारे बाद भी रहेगी। लेकिन हम भूल जाते हैं, एक दुनिया केवल दर्शक के लिए मौजूद है।
यह कहना कि बिना दर्शक के भी दुनिया होगी, यह कहने जैसा है कि बिना सपने देखने वाले के भी सपना होगा।
ईमानदारी से, मैं भूल गया कि हम किस बारे में बात कर रहे थे।
हम इस बारे में बात कर रहे थे:
आप जो दुनिया अभी देख रहे हैं वह सिर्फ दुनिया नहीं है। यह आपकी दुनिया है।
पूरी तरह से आपके द्वारा आकारित।
और उस निर्भरता की अज्ञानता में, हम मान लेते हैं कि इस दुनिया का हमसे अलग अस्तित्व है। और यहीं से भ्रम शुरू होता है।
आप मानते हैं कि यही दुनिया, जो आप अभी देख रहे हैं, आपके आने से पहले थी, और आपके जाने के बाद भी रहेगी। उसी रूप में। उसी नियमों के साथ। वही आकाश, वही रंग, वही तर्क।
लेकिन सच्चाई यह है: चूंकि यह आपकी दुनिया है, यह सब आपके जन्म के साथ शुरू हुई। और यह आपके साथ भी खत्म हो जाएगी।

हाँ, पूरी दुनिया खत्म हो जाएगी।
कोई परिवार नहीं, कोई अंतिम संस्कार नहीं, कोई संवेदना नहीं, कुछ भी नहीं।
तो… अब क्या?
क्या यह सब सिर्फ बौद्धिक मज़े के लिये था, या इसका वास्तव में मेरे जीने के लिए कोई अर्थ है?
ठीक है, इसे विचार करें:
आप एक वीडियो गेम खेल रहे हैं। केवल एक जीवन। और इस एक जीवन में आप जो कुछ भी करते हैं वह आपके भविष्य को तय करेगा।
आप सोने के सिक्के इकट्ठा कर सकते हैं, इनाम कमा सकते हैं, और प्रसिद्ध भी हो सकते हैं, यह सब इस बात पर निर्भर करता है कि आप कितनी अच्छी तरह खेलते हैं।
एक मौका। कोई पुन: प्रयास नहीं।
क्या आप
-: उस मौके को बहुत गंभीरता से नहीं लेंगे?
-: उस एक जीवन को खोने से डर नहीं लगेगा?
-: मरने से पहले हर सिक्का हथियाने की कोशिश नहीं करेंगे?
-: दूसरों को हराने, स्तर जीतने, और मौके को बर्बाद न करने का दबाव महसूस नहीं करेंगे?
और अगर आप उस गेम में अच्छे नहीं थे… क्या आप जिसने वो गेम बनाया है उसको नहीं कोसेंगे?
उस गंभीरता में, हो सकता है कि आप बहुत कुछ हासिल कर लें। सिक्के कमाएँ। बहुत सारे स्तर पार करें।
लेकिन एक बात निश्चित है, आप भूल जाएँगे कि बस एक गेम है।
आप इसे कुछ हासिल करने का मौका मानेंगे, न कि आनंद के लिए खेले जाने वाला खेल।
परिचित लगता है? क्या हम में से ज्यादातर लोग इसी तरह नहीं जी रहे?
लेकिन क्या होगा अगर आपको पता चले… कि गेम के बारे में आप जो कुछ भी मानते थे, वह सिर्फ एक विश्वास था? कुछ भी हासिल करने के लिए नहीं है। कोई पुरस्कार आगे नहीं लेकर जा सकते। सब कुछ गेम के साथ खत्म हो जाएगा, जैसे मृत्यु।
लेकिन फिर भी, यह एक अधभूत खेल है। वास्तव में, यह एकमात्र खेल है जो आप कभी खेलेंगे।
तो फिर, क्या आप अभी भी सिक्कों का पीछा करेंगे? हारने से डरेंगे?
आप कुछ कैसे खो सकते हैं… अगर कुछ हासिल करने के लिए नहीं है?
आप सिर्फ़ खेलेंगे…. खेलने के लिए खेलेंगे?
क्या आप हर गति, हर स्तर, हर छोटी-मोटी गड़बड़ी का आनंद नहीं लेंगे?
और जब यह खेल अंत होगा… तो बस अंत। बस… और कुछ भी नहीं।
और यही इसकी सुंदरता है।
कुछ भी नहीं। गेम ओवर।
अगर आप स्पष्ट रूप से देखें तो पूर्ण मृत्यु में, मृत्यु भी नहीं।
आखिरकार, क्या आपने कभी मरे हुए मारियो को देखा है?
