एक तारे को ‘क्यों’ की ज़रूरत नहीं।

पर मेरी फुंसी को तो है।

छवि पीट लिनफोर्थ द्वारा पिक्साबे से

“क्यों?”

क्या यह सिर्फ…

  • एक शब्द है?
  • एक वाक्य है?
  • या अपने आप में एक पूरा सवाल है?

नहीं। हमारे लिए, यह उससे कहीं अधिक है। यह मानसिक स्थिरता का परीक्षण है।

जब सिर पटकना पागलपन ना हो।

कल्पना कीजिए एक व्यक्ति की जो अपना सिर से पटक रहा है।
पूरी तरह से पागल व्यक्ति, है ना?

लेकिन क्या हो अगर वह आपको बता दें कि वो ऐसा क्यों क्यों कर रहा है?

और अगर उसका कारण तर्कसंगत भी हो?

क्या आप उसे फिर भी पागल कहेंगे?

इंसान होना, लेकिन किस कीमत पर?

“क्यों” का सवाल सिर्फ पागलपन तक सीमित नहीं है। यह उससे कहीं गहरा है।

यह इंसान होने का एक मापदंड भी है।

जैसा कि थॉमस लिगोटी ने कहा था:

“क्यों” एक ऐसा सवाल है जो कोई जानवर नहीं पूछ सकता।

तो, “क्यों” वह चीज है जो हमें जानवरों से अलग करती है।

अर्सलान अहमद द्वारा फोटो अनस्प्लैश पर

लेकिन, क्या यह अच्छी बात है या बुरी?

आखिरकार, कई बीमारियाँ केवल इंसानों में ही पाई जाती हैं, खासकर मानसिक बीमारियाँ।

आरडीएनई स्टॉक प्रोजेक्ट द्वारा फोटो

क्या होगा अगर “क्यों?” पूछने की यह निरंतर आवश्यकता बस उनमें से एक और है…

तो… क्या यह एक वरदान है या बीमारी?

मुझे नहीं पता। लेकिन मैं जानना चाहूंगा।

क्या आप मेरे साथ इस यात्रा पर शामिल होना चाहेंगे?

हम कारणों की तलाश नहीं कर रहे।

यह पूरा “क्यों” का मामला गंभीर लगता है। और हो भी क्यों न। आख़िरकार यह मानसिक स्थिरता से जुड़ा है। इंसान होने से।
लेकिन अगर आप गौर से देखें, तो इसमें एक मजेदार पक्ष भी है।

हम हर चीज के पीछे “क्यों” का पीछा करते रहते हैं… लेकिन क्या हम वास्तव में किसी के कार्यों के पीछे का कारण जानना चाहते हैं?

वास्तव में नहीं।

हम जो तलाश रहे हैं, वह वास्तव में एक ऐसी भावना है जिससे हम सभी संबंधित हो सकें

उस व्यक्ति को लें जो अपने सिर को दीवार से पटक रहा था।
आप पूछते हैं, “तुम ऐसा क्यों कर रहे हो?”
वह कहता है, “मैंने अपने सारे पैसे खो दिए।”

अचानक, आप उसे पागल नहीं कहते। आप उस पर दया करेंगे। आप शायद उसे रोकने की कोशिश भी करें। लेकिन उसे पागल कहना आपके दिमाग में नहीं आएगा।

क्यों?

शायद इसलिए कि उसका व्यवहार अब कुछ परिचित हो जाता है। कुछ ऐसा जो हम सभी महसूस करते हैं। पैसे खोने की निराशा। यह वह चीज है जो हम सभी समझते हैं

टिम गाउ द्वारा फोटो

लेकिन एक सेकंड के लिए सोचें…
क्या पैसे खोने के बाद सिर पटकना वास्तव में तर्कसंगत है?

अगर कोई रोबोट या एलियन इसे देखे, तो क्या वह नहीं पूछेगा:
 “रुकिए, इंसान अपने सिर को दीवार से क्यों टकराता है जब वह अपने पैसे खो देता है? क्या इससे धन वापस आता है? या शायद यह उसे उसकी याददाश्त मिटाने में मदद करता है?”

लेकिन हम ऐसा नहीं करते। हम तब संतुष्ट हो जाते हैं जब भावना सही बैठती है

हाँ, भावनाएँ। यही वह चीज है जो हम सभी किसी के कार्यों के पीछे जानना चाहते हैं। और एक बार जब हमें वह पता चल जाता है, तो कोई भी कार्य अजीब नहीं लगता।

यह वह आधार है जिसे हम सभी साझा करते हैं।

एक ऐसा आधार जहाँ “क्यों” अब मायने नहीं रखता। एक ऐसा आधार जो स्वस्थ इंसान किसी अन्य जानवर या पागल व्यक्ति के साथ साझा करता हैं

यह बस… सही लगता है।

यर्लिन मटु द्वारा फोटो अनस्प्लैश पर

आप सोच सकते हैं कि आपके कुछ कार्य तर्कसंगत हैं। कि वे सिर्फ भावनाओं के भाव में किए गये कार्य नहीं हैं।

लेकिन इसे आजमाएँ: 
कोई भी कार्य, सचमुच कोई भी, लें और “क्यों” पूछते रहें जब तक आप आगे न जा सकें।

स्पॉयलर अलर्ट:-
वे सभी एक ही जगह पर खत्म होते हैं: और वह जगह है, “बस सही लगता है”।

इसे परखें।

खाना क्यों?

  • आपने सेब क्यों खाया? 
    मुझे भूख लगी थी।
  • अपनी भूख क्यों मिटाई? 
    यह सही लगता है।

यह आसान है। 
शारीरिक, मूलभूत। समझ में आता है।

लेकिन कुछ रचनात्मक के बारे में क्या? कुछ मानवीय? जैसे चित्रकला।

चित्रकला क्यों?

  • आप चित्र क्यों बनाते हैं? 
    क्योंकि मुझे यह पसंद है।
  • इसे पसंद क्यों करते हैं? 
    यह मुझे खुद को व्यक्त करने में मदद करता है।
  • आप खुद को व्यक्त क्यों करना चाहते हैं? 
    मुझे नहीं पता। यह बस जरूरी लगता है

फिर भी एक भावना।

अब, एक मोड़। क्या होगा अगर हम अपनी भावनाओं के खिलाफ जाएँ?

जिम क्यों?

  • मुझे खाने का मन है, लेकिन मैं इसके बजाय जिम जाता हूँ।
  • क्यों? 
    स्वस्थ रहने के लिए।
  • स्वस्थ क्यों रहना है? 
    सही लगता है…

ठीक है, लेकिन उन चीजों का क्या जो हम अपने लिए नहीं करते? 
हमारे बलिदानों का क्या?

सैनिक अपनी जान क्यों बलिदान करता है?

  • एक सैनिक अपने देश के लिए मरता है।
  • वह ऐसा क्यों करता है? 
    अपने देश की रक्षा के लिए।
  • वह अपने देश की रक्षा क्यों करना चाहता है? 
    वह अपने देश से प्यार करता है।
  • वह उस चीज को क्यों बचाएगा जिससे वह प्यार करता है? 
    सही लगता है।

मैं जानता हूँ, ऐसा लग सकता है कि मैंने जबरदस्ती जवाबों को उस निष्कर्ष तक पहुँचाया है। जैसे मैंने उन्हें बनाया सिर्फ अपने तर्क को सिद्ध करने के लिए।

और हाँ, शायद मैंने ऐसा किया… थोड़ा।

लेकिन इसे खुद आजमाएँ। कोई भी कार्य चुनें। इसके पीछे क्यों पूछते रहें।

अगर आप वास्तव में ईमानदार हैं, चतुर बनने की कोशिश नहीं करते, तो आप देखेंगे:
हमारा कर काम हमेशा एक भावना में खत्म होता है। 

एक ऐसी भावना जो बस… सही लगती है

भावनाओं की मशीनें

सही लगना हमारे लिए इतना स्वाभाविक है, इतना गहराई से जुड़ा हुआ है, कि हम इस पर कभी सवाल नहीं उठाते

बेशक, हम बहस करते हैं कि कौन सी भावना सही है। या कौन सा कार्य बेहतर भावना की ओर ले जाएगा। लेकिन कोई नहीं पूछता:

सही लगना अपने आप में क्यों महत्वपूर्ण है?

यह ऐसा है जैसे हाथी को प्रशिक्षित करना? उसे नहीं पता कि वह दो पैरों पर क्यों खड़ा है। वह बस जानता है:
 → करो — खाना मिलेगा।
 → मत करो — छड़ी मिलेगी।

क्या हम भी ऐसे ही नहीं हैं?

क्या प्रकृति ने हमारे साथ भी वही चाल नहीं खेली?
खाओ — अच्छा महसूस करो। छोड़ो — भूख महसूस करो।
सोओ — आराम महसूस करो। जागते रहो — थकावट महसूस करो।
पानी पियो — अच्छा महसूस करो। मत पियो — प्यास महसूस करो।
व्यायाम — अच्छा महसूस करो। छोड़ो — कमजोरी महसूस करो।

रेमंड पेट्रिक द्वारा फोटो अनस्प्लैश पर

कोई तर्क नहीं। कोई सफ़ाई नहीं। कोई “क्यों” नहीं।

और सबसे अजीब बात?
हमें इससे कोई समस्या भी नहीं लगती। 
अगर हम “क्यों” को इतना महत्व देते हैं, तो क्यों हम इसे सबसे बुनियादी चीजों पर भी लागू नहीं करते?

मुझे लगता है कि यहीं पर हम वास्तव में महसूस कर सकते हैं कि एंटोनियो डमासियो ने क्या कहा:-

हम सोचने वाली मशीनें नहीं हैं। हम भावनात्मक मशीनें हैं जो सोचती भी हैं।

वह हाथी, वह अपनी पूरी जिंदगी आदेश पर खड़ा रहेगा, यह कभी नहीं जानते हुए कि वह किस सर्कस का हिस्सा है।

पिक्साबे द्वारा फोटो

हम भी ऐसा ही कर सकते हैं। वास्तव में, हम में से ज्यादातर लोग इसी तरह जीते हैं। आखिरकार, जीवित रहने के लिए उत्सुकता की मांग नहीं होती

लेकिन खुद से पूछें: क्या आप वास्तव में उस हाथी के स्थान पर रहना पसंद करेंगे? 
भावनाओं का पालन करना। दर्द से बचना। मज़े का पीछा करना। और कभी नहीं पूछना यह सब किस लिए है?

मुझे पता है कि हम एक भावनात्मक मशीनें हैं। लेकिन, क्या हम ऐसी भावनात्मक मशीनें नहीं हैं जो सोचती है?

स्वार्थी हृदय

अच्छी बात ये है कि, प्रकृति सर्कस प्रशिक्षक जितनी क्रूर नहीं है। 

इसने हमें न केवल सोचने की शक्ति दी… इसने हमारे समझने के लिए संकेत भी छोड़े हैं।

और उनमें से एक ठीक इसके केंद्र में बैठता है, हमारा अपना हृदय।

जी हाँ। हमारा अपना हृदय।

हम अक्सर कहते हैं कि हृदय रक्त पंप करके हमें जीवित रखता है। काफी सरल।

लेकिन यहाँ कुछ ऐसा है जिस पर हम आमतौर पर विचार नहीं करते:
हृदय स्वयं एक जीवित अंग है। इसे ऑक्सीजन, ऊर्जा, और पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है, जैसा कि बाकी सब चीजों को। और जीवित रहने के लिए, इसे पंप करते रहना पड़ता है

डीएस स्टोरीज द्वारा फोटो

अब, अगर हम हृदय को बोलते हुए सुन सकें, तो शायद वह कहेगा:
बेशक, मैं रक्त पंप करता हूँ क्योंकि यह सही लगता है। यही वह तरीका है जिससे मुझे ऑक्सीजन और ऊर्जा की स्थिर आपूर्ति मिलती है। क्या पंप करना एक साधारण सी बात नहीं है? इसके बारे में भला सूचना कैसा? जीवित रहना है तो पंप तो करना पड़ेगा ही। सभी हृदय यही तो करते हैं।

और वे फेफड़े और वह जिगर? वे संयोग से नहीं हैं; वे मुझे जीवित रखने के लिए ही है। ”

क्या आपको नहीं लगता कि उसे सोचना चाहिए:
मुझे पंप क्यों करना पड़ता है
प्रकृति ने मुझे इस तरह क्यों बनाया… 
जहाँ
पंप करना भी अच्छा लगता है?”

हृदय की तरह, हम भी पंप करते रहते हैं। 
या, हम कह सकते हैं, साँस लेते रहते हैं, खाते रहते हैं, और काम करते रहते हैं।

तो, क्या हम पूरी तस्वीर देख सकते हैं? 
एक ऐसी तस्वीर जहाँ हम सिर्फ एक हिस्सा हैं, केंद्र नहीं

एक ऐसी तस्वीर जिसे हम सभी प्रकृति के रूप में जानते हैं।

हम, प्रकृति

यह सरल लग सकता है, “खुद को प्रकृति के हिस्से के रूप में देखना”।

लेकिन ऐसा नहीं है। 

ऐसा इसलिए नहीं है क्योंकि हम इस तरह सोचने के आदी नहीं हैं।

हृदय की तरह, हम भी सब कुछ अपने दृष्टिकोण से देखते हैं।

उदाहरण के लिए, हम कहते हैं:
पेड़ हमें ऑक्सीजन देते हैं।” ना कि:
हम पेड़ों के लिए कार्बन डाइऑक्साइड छोड़ते हैं।

बैक्टीरिया हमें भोजन पचाने में मदद करते हैं।” ना कि:
हम खाते हैं, ताकि हमारे अंदर अरबों बैक्टीरिया जीवित रह सकें।

फल हमारे खाने के लिए होते हैं।” ना कि:
हम इन्हें खाते हैं ताकि उनके बीज बिखर सकें।

चारों ओर देखें। हमें जो कुछ भी चाहिए, वह यहाँ है। हमारा शौच, हमारा मृत शरीर; प्रकृति उन्हें सिर्फ निपटाती नहीं है, बल्कि उनसे बढ़ती है

क्या आपको नहीं लगता कि यहाँ सब कुछ एक साथी व्यवस्था का हिस्सा है? कुछ ऐसा जिसके लिए हम हैं, न कि इसके उलट?

जैसे हृदय सबसे तेज धड़कने के लिए विकसित नहीं हुआ, यह शरीर के साथ सामंजस्य करने के लिए विकसित हुआ है… उसी तरह, हम भी इसीलिए जीवित नहीं हैं की हम सबसे सर्वश्रेष्ठ है, अपितु हमारा अस्तित्व भी प्रकृति से सामंजस्य पर ही आधारित है।

एक बार जब आप इसे इस तरह देखना शुरू करते हैं, तो चीजें बदलने लगती हैं। यह बहुत स्पष्ट प्रतीत होगा कि:

जैसे शरीर हृदय का मालिक नहीं है, प्रकृति हमारी मालिक नहीं है।

क्योंकि हम प्रकृति से अलग ही नहीं हैं। 

हम प्रकृति ही हैं।

बेंजामिन रेंजर द्वारा फोटो अनस्प्लैश पर

मुझे लगता है कि इसे एलन वाट्स से बेहतर कोई नहीं समझा सकता:

जैसे सेब का पेड़ सेब देता है, वैसे ही पृथ्वी लोग देती है।

भावनाएँ क्यों?

तो जब हम पूछते हैं — 
“हम जो महसूस करते हैं, उसे क्यों महसूस करते हैं?”
शायद जवाब सिर्फ हमारे बारे में नहीं है।

शायद भावनाएँ केवल हमारे जीवित रहने के लिए नहीं हैं, बल्कि प्रकृति के सुचारू रूप से बने रहने के लिए हैं।

वे सिर्फ़ हमें दुनिया का उपयोग करने में मदद नहीं करतीं। वे प्रकृति को हमें भी उपयोग करने देती हैं।

ये भावनाएँ…
ये अदृश्य धागे हैं जो प्रकृति में सब कुछ बांधते हैं।

हम, प्रकृति का कैंसर।

मुझे पता है… यह सब स्वीकार करना मुश्किल हो सकता है।

क्योंकि हम अब जंगल में नहीं रह रहे। और अब हम जो निपटाते हैं, वह सिर्फ थूक और मल नहीं है जिससे जंगल बढ़ सकता है। 

अब वह प्लास्टिक है। विकिरण है। रासायनिक कचरा है।

तो अगर इंसान प्रकृति का सिर्फ एक हिस्सा हैं, जैसे शरीर में एक अंग, तो कोई अंग उस शरीर को कैसे नष्ट कर सकता है जिसका वह हिस्सा है?

शायद मैं उस रूपक के साथ बहुत उदार था। हम अंग नहीं हैं। हम कोशिकाओं की तरह हैं।

और कोई साधारण कोशिकाएँ नहीं।
ऐसी कोशिकाएँ जो:

  • विश्वास करती हैं कि वे शरीर से अलग हैं,
  • बिना नियंत्रण के बढ़ती हैं,
  • जितना देती हैं उससे ज्यादा लेती हैं,
  • और उनके आसपास की व्यवस्था को बाधित करती हैं।

परिचित लगता है?

यह कैंसर है। हाँ कैंसर की कोशिकाएँ भी यही करती हैं। यही हम प्रकृति के लिए बन गए हैं।

सारा ट्रमर द्वारा फोटो

इससे पहले कि आप सोचें कि मैं इंसानियत को कोस रहा हूँ, यहाँ कुछ याद रखने योग्य है:

एक कैंसरग्रस्त कोशिका शरीर के बाहर से नहीं आती। यह कोई घुसपैठिया नहीं है।
यह मूल ब्लूप्रिंट का हिस्सा है। यह शरीर की खुद को नष्ट करने की रणनीति है।

शायद हम भी वही हैं।

तो चाहे हम प्रकृति के लिए काम कर रहे हों या इसके खिलाफ, यह फिर भी प्रकृति है, जो हमारे माध्यम से कार्य कर रही है।

प्रकृति क्यों?

आइए एक पल के लिए रुकें। और देखें कि यह पूरा “क्यों” का सफर हमें कहाँ ले गया है।

हमने शुरूआत की थी यह देखकर कि हम क्यों को स्वस्थ दिमाग की पहचान कैसे मानते हैं।
लेकिन जब हमने इसका ईमानदारी से पीछा किया, तो हमें पता चला कि हर कार्य, हर विकल्प के पीछे, केवल एक चीज इंतजार कर रही है:
एक ऐसी भावना जो सही लगती है

फिर आया हाथी। कैसे प्रकृति इनाम और सजा तय करती है, बिना कभी “क्यों” समझाए।

इसने हमें हृदय तक पहुँचाया। एक रूपक जो दिखाता है कि अलग महसूस करना हमें उस व्यवस्था से अंधा कर सकता है जिसका हम हिस्सा हैं।

हमने देखा कि भावनाएँ, जो सभी “क्यों” के जवाब थीं, शायद सिर्फ व्यक्तिगत नहीं हैं, बल्कि प्रकृति का हिस्सा हैं ताकि वह खुद को चलाए रखे।

लेकिन “क्यों” का सवाल यहाँ रुक नहीं सकता।

अगर हम पेड़ों के लिए काम कर रहे हैं, और पेड़ हमारे लिए काम कर रहे हैं…
तो यह सब कुछ किसके लिए काम कर रहा है?

संक्षेप में, प्रकृति क्यों?

छवि हंटर द्वारा

यह ऐसा है जैसे हमारे शरीर की एक छोटी सी कोशिका सोच रही हो:
पूरा शरीर यह सब किस लिए कर रहा है?

क्या आपको लगता है कि आपके शरीर की एक कोशिका कभी समझ सकती है कि आप अभी इस लेख को पढ़ रहे हैं ? शायद नहीं।

लेकिन वह फिर भी कहानियाँ बना सकती है। और यही हम में से कई लोगों ने किया है।

कुछ कहते हैं यह ईश्वर है। (जाहिर है, उनका ईश्वर।)
या दिव्य ऊर्जा।
या एक सार्वभौमिक मन।
कुछ बस कंधे उचकाकर कहते हैं: “संयोग का खेल है। बस इतना ही।”

लेकिन बात यह है,
भले ही हम कहें कि प्रकृति से परे कोई उच्च शक्ति है… हम वहाँ अपने “क्यों” को क्यों रोक देते हैं?

क्यों न पूछें: “ईश्वर क्यों?”

और चाहे आप कितने भी कल्पनाशील हों, चाहे आपका दिमाग कितना भी दूर तक पहुँचे, किसी बिंदु पर, आपको रुकना होगा और कहना होगा:

यह बस है। कोई उद्देश्य नहीं। कोई कारण नहीं। कोई क्यों नहीं।

बिना कारण का ब्रह्मांड, सिवाय मेरे

और यहीं… यहीं से हमारे सभी भरम एक एक कर के गिरने लगते हैं।

अगर अस्तित्व का कोई कारण नहीं है, तो न ब्रह्मांड का, न जीवन का, न हमारा, न हमारे साथ होने वाली किसी भी चीज का।

और गहराई में, शायद हम पहले से ही यह जानते हैं। हम शायद ही कभी ऐसी चीजों के पीछे कारण पूछते हैं जैसे:

  • बादलों का आकार।
  • पक्षियों की चहचहाहट।
  • पुरानी किताब पर धूल।
  • आकाश में तारों की संख्या।

वे हमें परेशान नहीं करते। वे दूर लगते हैं। असंबंधित। तो हम उन्हें रहने देते हैं।

लेकिन जिस क्षण कुछ हमारी छोटी कहानी को छूता है, भले ही सबसे छोटे तरीके से, हम स्पष्टीकरण की मांग शुरू कर देते हैं।

  • हमारी नई कार पर एक खरोंच।
  • हल्का सिरदर्द।
  • तीस की उम्र में एक सफेद बाल।

हम फुसफुसाते हैं, या कभी-कभी चिल्लाते हैं:
 “क्यों, ईश्वर?”

क्योंकि हमने अपने जीवन को केंद्र बना कर ही पूरे अस्तित्व को देखते हैं। 

हमारे लिए, हमारे जीवन का एक उद्देश्य होना चाहिए, और न केवल एक उद्देश्य, बल्कि एक बड़ा उद्देश्य

और अगर हमारे जीवन का एक उद्देश्य है, तो हमारे साथ होने वाली हर चीज का भी उद्देश्य होना चाहिए।

हम विरोधाभास नहीं देखते।
हम पूरे आकाशगंगाओं को बिना कारण के मौजूद रहने देने को तैयार हैं, लेकिन हमारे चेहरे पर एक छोटे से दाने को नहीं।

ग्रेग राकोज़ी द्वारा फोटो अनस्प्लैश पर

शायद यही समझदार होने का मतलब है। और मतलब है इंसान होने का।

इंसान, ऐसा प्राणी जो इस फ़िज़ूल के अस्तित्व को अपनी मतलबी चिंताओं से ही सही, पर कम से कम मतलब तो देता है।

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